कांवड़ यात्रा में भगवा वस्त्र पहनने के पीछे छुपे हैं विशेष कारण, जरुर जानें

सावन माह का शिव भक्तों को बेसब्री से इंतजार रहता है। हर साल सावन के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से कांवड़ यात्रा की शुरुआत होती है, जो कृष्ण चतुर्दशी तक चलती है। इस साल 11 जुलाई 2025 से कांवड़ यात्रा शुरू हो रही है। इस दौरान श्रद्धालु दूर-दूर से पवित्र नदियों का जल भरकर अपने गृह जनपद में आकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।
ऐसे में इस मौके पर आप ज्यादातर कांवड़ियों को भगवा वस्त्र पहने हुए देखेंगे। क्या आप जानते हैं इस रंग के कपड़ों को पहनने के पीछे क्या है कारण? यदि नहीं, तो आज हम आपको इस रंग का धार्मिक और आध्यात्मिक कारण बताने जा रहे हैं।
कांवड़ यात्रा में भगवा रंग का वस्त्र क्यों पहना जाता है
त्याग, तपस्या और भक्ति का प्रतीक
आपको बता दें सनातन धर्म में भगवा रंग यानि केसरिया रंग सेवा, त्याग, तपस्या और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। इस रंग को साधुओं और संन्यासियों का रंग भी माना जाता है। जो सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठकर भगवान के प्रति भक्ति में लीन होते हैं।
कांवड़ यात्रा में भगवा रंग का वस्त्र पहनना ये दिखाता है कि भक्त अपने जीवन की दैनिक गतिविधियों से ऊपर उठकर शिव की भक्ति में लीन हो गया है।
ब्रह्मचर्य के साथ सात्विकता का पालन
कांवड़ यात्रा के दौरान भगवा वस्त्र पहनना ये भी दिखाता है कि, कांवड़िए तपस्वी भाव में है और यात्रा के दौरान संयम, ब्रह्मचर्य के साथ सात्विकता का पालन भी करते हैं। यात्रा के दौरान भगवा रंग का वस्त्र भक्त के अंदर ऊर्जा, आत्मबल और आध्यात्मिक शक्तियों को भी बढ़ाता है।
अनुशासन और एकजुटता का प्रतीक
कांवड़ यात्रा में भगवा वस्त्र अनुशासन और एकजुटता का प्रतीक भी होता है। ये रंग उन्हें एकता में बांधता है और उनमें सेवा, समर्पण और धार्मिक चेतना भाव को जागृत करता भगवा वस्त्र धारण करने वाले कांवड़ियों के लिए कुछ नियम भी होते हैं। जिनमें मांस-मदिरा का त्याग करना, झूठ न बोलना और यात्रा के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना शामिल है।
भावनात्मक और आध्यात्मिकता का प्रतीक
कांवड़ यात्रा के दौरान भगवा वस्त्र पहनना केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि सनातन धर्म से जुड़े लोगों के लिए भावनात्मक और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। ये रंग शिव और भक्त को आपस में जोड़ता हैं। इसके साथ ही भगवा रंग संकल्प, श्रद्धा और साधना का भी प्रतीक है।