छत्तीसगढ़

चिकित्सा शिक्षा विभाग का आदेश – लोकतंत्र में सेंध का प्रयास, माधवराव सप्रे की प्रतिमा के सामने बैठकर जताया विरोध

स्वास्थ्य मंत्री द्वारा फरमान वापस लिए जाने पर पत्रकार संघ ने जताया आभार

रायपुर । श्रमजीवी पत्रकार संगठन के प्रदेश उपाध्यक्ष मोहन तिवारी में संगठन की ओर से विज्ञप्ति जारी करते हुए आज अस्पतालों में कवरेज को लेकर बनी सरकारी गाइडलाइन पर अपना विरोध जताया है तिवारी ने कहा छत्तीसगढ़ के अस्पतालों में मीडिया की नाकेबंदी का सरकारी आदेश न सिर्फ पत्रकारिता की स्वतंत्र आत्मा पर हमला है, बल्कि इसे लोकतंत्र के सीने में ठोंकी गई कील माना जाए तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा 13 जून 2025 को जारी यह आदेश विभाग के काले कारनामों को छुपाने वाली “गगनचुंबी बौद्धिक कसरत” है जो कि बताती है कि शासन को पारदर्शिता से ज़्यादा परदा प्यारा है।पत्रकार संघ के पत्रकार साथियों ने रायपुर के माधव राव स्प्रे स्कूल स्थित सप्रे जी की प्रतिमा के सामने मौन बैठकर विरोध जताया, वहीं से फोन में संपर्क कर श्रम जीवी पत्रकार संघ ने स्वास्थ्य मंत्री का भी ध्यान आकर्षित किया, जिसके बाद स्वास्थ्य मंत्री ने इस फरमान को वापस लेने का बयान जारी किया है

श्रमजीवी पत्रकार संघ के उपाध्यक्ष मोहन तिवारी ने इस आदेश को “तुग़लकी फरमान” बताते हुए कड़ा विरोध दर्ज किया है। उन्होंने तीखे शब्दों में कहा –
“इस आदेश के हिसाब से अब पत्रकार अस्पताल नहीं, किसी वक़ील के दफ्तर की तरह ‘नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट’ लेकर ही दाखिल हो सकेंगे – यानी पहले मरीज़ से लिखित में माँगो, फिर जनसंपर्क अधिकारी से अनापत्ति लो, और तब कहीं जाकर सरकारी सच्चाई की एक झलक मिल पाएगी।”

उन्होंने मेडिकल मीडिया गाइडलाइन पर व्यंग्य करते हुए कहा –
“शायद अगला आदेश ये आ जाए कि कैमरा उठाने से पहले पत्रकारों को मेडिकल एप्रन पहनकर शपथ लेनी होगी कि वे डॉक्टरों की मनोदशा पर कोई सवाल नहीं उठाएँगे।”
मोहन तिवारी ने कहा कि इस आदेश से न सिर्फ पत्रकारों की आज़ादी छिनी जा रही थी, बल्कि मरीज़ों के अधिकारों का भी गला घोंटा जा रहा था।

“सरकारी अस्पतालों की हालत को छिपाने की यह कवायद सीधे तौर पर जनहित के खिलाफ थी। अब अगर किसी अस्पताल में लापरवाही हो, ऑपरेशन थियेटर में ताले लगे हों या दवाओं का टोटा हो – तो पत्रकार उसके बारे में भी तभी लिख पाते, जब ‘श्रीमान विभाग’ से अनुमति मिलती!”
इस आदेश के विरोध स्वरूप श्रमजीवी

श्रमजीवी पत्रकार संघ इस बात के लिए छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल का धन्यवाद ज्ञापित करता है कि उन्होंने जनभावनाओं, लोकतांत्रिक मूल्यों और पत्रकारों की चिंताओं को समझते हुए इस आदेश को वापस लेने का निर्णय लिया। यह एक संवेदनशील और लोकतांत्रिक नेतृत्व की पहचान है।
श्रमजीवी पत्रकार संघ की ओर से मोहन तिवारी ने कहा कि
“हम आदेश की समीक्षा नहीं, उसकी समाप्ति चाहते थे – और मंत्रीजी ने वही किया। यह निर्णय स्वागत योग्य है पत्रकारों की तीखी प्रतिक्रियाओं के बाद इस फैसले पर सरकार का पत्रकार के मांगो के प्रति सकारात्मक रुख दर्शाता है कि लोकतंत्र में संवाद अब भी ज़िंदा है।”

श्रमजीवी पत्रकार संघ का यह भी मत है कि अब एक संतुलित और व्यावहारिक मार्गदर्शिका तैयार की जानी चाहिए, जिसमें मरीज़ों की गोपनीयता और जनहित दोनों का समान रूप से सम्मान हो। मीडिया को ‘गेट पास’ नहीं, भरोसे और जिम्मेदारी के साथ कार्य करने का अधिकार मिले – यही लोकतंत्र की असली मांग है।

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