लक्ष्मी महिला सहकारी बैंक धोखाधड़ी मामले में कुलदीप सिंह भाटिया दोषी करार

रायपुर. लक्ष्मी महिला सहकारी बैंक में हुए एक बड़े वित्तीय धोखाधड़ी मामले में रायपुर जिला न्यायालय ने कुलदीप सिंह भाटिया को दोषी ठहराया है। यह मामला धारा 138, पत्रकार्य लिखत अधिनियम (निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट) के तहत दर्ज किया गया था, जिसमें भाटिया पर बैंक को चेक के माध्यम से 1,09,32,221 रुपये के भुगतान में विफल रहने का आरोप था।
मामले की सुनवाई के दौरान, परिवादी बैंक ने दावा किया कि भाटिया ने 1 करोड़ रुपये से अधिक का ऋण लिया था, जिसके भुगतान के लिए चेक जारी किया गया था। हालांकि, भाटिया ने दावा किया कि उन्होंने लगभग 60 लाख रुपये का भुगतान पहले ही कर दिया है और बकाया राशि केवल 40 लाख रुपये है। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि बैंक ने उनकी जमा राशि को समायोजित नहीं किया और न ही उन्हें बैंक स्टेटमेंट प्रदान किया।
हालांकि, अदालत ने पाया कि भाटिया अपने दावों के समर्थन में कोई ठोस दस्तावेजी सबूत पेश करने में विफल रहे। बैंक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों, विशेष रूप से चेक और संबंधित दस्तावेजों (प्र.पी. डी-01 और प्र.पी. डी-02), का खंडन करने में वे असमर्थ रहे। इसके अतिरिक्त, भाटिया ने यह साबित नहीं किया कि उनके और बैंक के बीच कोई बंधक पत्र (मॉर्गेज डीड) निष्पादित नहीं हुआ था।
अदालत ने अपने फैसले में कहा कि परिवादी बैंक ने अपने दावे को संदेह से परे साबित किया है। धारा 118 और 139, पत्रकार्य लिखत अधिनियम के तहत यह माना जाता है कि चेक विधिक रूप से लागू कर्ज के लिए जारी किया गया था, और भाटिया इस उपधारणा का खंडन करने में असफल रहे।
सजा का विवरण
रायपुर जिला न्यायालय ने कुलदीप सिंह भाटिया को तीन महीने की साधारण कारावास की सजा सुनाई है। इसके साथ ही, दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357(3) के तहत उन्हें 1,29,00,020 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया गया है। यह राशि परिवादी बैंक को क्षतिपूर्ति के रूप में दी जाएगी।
मामले का महत्व
यह मामला लक्ष्मी महिला सहकारी बैंक और उसके ग्राहकों के बीच विश्वास बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है। अदालत ने अपने फैसले में गुहाहटी हाई कोर्ट के एक निर्णय का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि किसी भी दस्तावेजी सबूत का खंडन तर्कसंगत और साक्ष्य-आधारित होना चाहिए। भाटिया द्वारा ऐसा कोई खंडन नहीं किया जा सका, जिसके आधार पर उन्हें दोषी ठहराया गया।
यह फैसला उन लोगों के लिए एक चेतावनी है जो वित्तीय लेनदेन में धोखाधड़ी या गलत हस्तक्षेप करते हैं। साथ ही, यह सहकारी बैंकों के लिए अपनी प्रक्रियाओं को और मजबूत करने का संदेश देता है।
आगे की प्रक्रिया
आभियुक्त को सजा के खिलाफ अपील करने का अधिकार है, और यह देखना बाकी है कि क्या वे इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देंगे। फिलहाल, यह मामला वित्तीय अनुशासन और पारदर्शिता के महत्व को रेखांकित करता है।