धर्म-अध्यात्म

इन वजहों से व्यर्थ चला जाता है श्राद्ध, जानें इन बातों के बारे में

7 सितंबर से पितृपक्ष शुरू हो रहे हैं। श्राद्धपक्ष में सभी अपने पितरों के लिए श्राद्ध कर्म करते हैं। अपने पितरों की तिथि के दिन उनका श्राद्ध किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पितृपक्ष में पितर अपने घर तृर्प्त होने आते हैं। अगर उनका श्राद्ध होता है, तो तृप्त होकर अपनी पीढ़ी को आशीर्वाद देकर जाते हैं। सही विधि-विधान से किए गए श्राद्ध से पितर प्रसन्न होकर तृप्त होते हैं। इसलिए विधि विधान से पितरों का श्राद्ध करना चाहिए।इस साल 7 सितंबर से लेकर 21 सितंबर तक पितृपक्ष रहेंगे। पूर्णिमा से लेकर अमावस्या तक श्राद्ध किए जाते हैं। लेकिन श्राद्ध करते समय अगर कुछ गलतियों को करते हैं, तो वो श्राद्ध व्यर्थ चला जाता है। स्कंदपुराण में कुछ बातों को जिक्र है, जो श्राद्ध के दौरान या बाद में नहीं करनी चाहिए। आइए जानें उन बातों के बारे में:

जो मनुष्य आधा श्राद्ध करके या श्राद्धाननन भोजन करके दूसरे गांव में जगह चला जाता है, उसका वह श्राद्ध व्यर्थ हो जाता हे ।

श्राद्ध का निमन्त्रण आने पर ब्राह्मण को भी अपने घर भोजन नहीं करना चाहिए, जो मोहवश भोजन कर लेता है, वह अधोगति को प्राप्त होता है।

यजमान को भी चाहिअ कि श्राद्ध करके दोबारा भोजन नहीं करना चाहिए, जो दोबारा भोजन कर लेते है, वे निश्चय ही नरक में जाते हैं।

जो श्राद्ध-भोजन अथवा श्राद्ध-दान करके युद्ध या कलह करता है, उसका पूरा श्राद्ध व्यर्थ चाला जाता है। श्राद्धको व्यर्थं कर देता है ।

ब्रह्माजीने श्राद्ध के योग्य ब्राह्यणों को बताते हुए धेवतों यानी बेटी का बेटो को प्रथम स्थान दिया है। इसलिए पितरों के संतोषके लिए उसे श्राद्ध में जरूर शामिल करे। ब्रह्माजीने पशुओंकी सृष्टि करते समय सबसे पहले गौओंको रचा है; अतः श्राद्ध में गायों के लिए भोजन निकालना चाहिए।

श्राद्धा का भोजन दिनमे ही हो जाना चाहिए। जो श्राद्धकर्ता पुरुष सूर्यास्त होने पर भोजन करता है, उसका वह श्रद्ध व्यर्थं हो जाता है। इसलिए रात में भोजन नहीं करना चाहिए।

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