भारत-पाक बंटवारे का वो खौफनाक सच

भारत की आजादी से एक दिन पहले, यानी 14 अगस्त को, अंग्रेजों ने पाकिस्तान को एक स्वतंत्र राष्ट्र घोषित किया। यह वह दौर था जब करोड़ों लोग अपने घर-बार छोड़ने को मजबूर थे। उस वक्त लोगों को जो कुछ भी मिला संदूक, बक्सा, तिजोरी या गठरी… लोगों ने उसमें अपना सामान समेटा और बस चल दिए।
पाकिस्तान में पीढ़ियों से बसे हिंदू परिवार भारत की ओर पलायन कर रहे थे, वहीं बड़ी संख्या में मुसलमान पाकिस्तान की ओर जा रहे थे। लेकिन पाकिस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा के साथ ही यह पलायन भयावह हिंसा और नरसंहार में बदल गया।
बड़ी संख्या में लोग केवल तन पर पहने कपड़ों के साथ ही भागे, क्योंकि उनके लिए गहनों, जेवरों या संपत्ति से ज्यादा जरूरी था अपने परिवार को, खासकर महिलाओं को सुरक्षित ले जाना था। यह सब घटनाएं आज के भारत और पाकिस्तान की धरती पर हुई थीं। भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान अचानक हुआ पलायन एक भीषण त्रासदी में बदल गया।
लाखों लोगों सड़कों पर ही काटा जाने लगा, निर्दोष महिलाओं और नन्ही बच्चियों तक को बलात्कार का शिकार होना पड़ा। दंगों और लूटपाट की घटनाओं ने मानवता को शर्मसार कर दिया।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इस हिंसा में दोनों तरफ के 10 लाख से अधिक लोग मारे गए, जबकि लगभग 83 हज़ार महिलाओं और बच्चियों के साथ बलात्कार किया गया। हालात इतने भयावह हो गए कि विभाजन रेखा के दोनों ओर लोगों के समूह पलायन कर रहे शरणार्थियों पर हमला करने लगे। यह दौर मानव इतिहास का एक काला अध्याय बन गया।
भारत और पाकिस्तान के विभाजन के वक्त, जो लोग सदियों से साथ रह रहे थे, वे अचानक एक-दूसरे के खिलाफ हो गए। इतिहासकारों का मानना है कि यह निर्णय बहुत जल्दबाजी में लिया गया था। उस समय ब्रिटिश शासन के अंतिम गवर्नर जनरल, लॉर्ड माउंटबेटन को दोनों देशों को अलग करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, और उनका लक्ष्य था कि यह काम किसी भी तरह जल्द से जल्द पूरा हो जाए।
सीमा रेखा तय करने का जिम्मा ब्रिटिश अफसर सीरिल रेडक्लिफ को सौंपा गया, जो बंटवारे से कुछ ही हफ्ते पहले भारत आए थे। उनके पास न तो पर्याप्त समय था और न ही यहां के इतिहास व भूगोल की पूरी जानकारी। नतीजतन, उन्होंने जल्दबाजी में एक रेखा खींच दी, जिससे दुनिया के नक्शे पर भारत और पाकिस्तान दो अलग-अलग देशों के रूप में उभरे। 14 अगस्त को अंग्रेजी शासन से आजादी मिली, लेकिन अंग्रेजों को यहां की जनता की भलाई से ज्यादा अपने सैनिकों को जल्दी ब्रिटेन वापस भेजने की चिंता थी।
जानकार बताते हैं कि उस समय चारों ओर खून और हिंसा का भयावह माहौल फैला हुआ था। 15 अगस्त की सुबह भी लाखों लोग घोड़ों और खच्चरों पर सवार होकर सीमा की लकीर पार कर रहे थे। जिन पर मजबूरी में पलायन थोप दिया गया, उनकी आंखों से जिंदगी की सारी चमक खो चुकी थी। कोई नंगे पांव और फटे कपड़ों में सफर करने को मजबूर था, तो कोई अपने आलीशान घरों को छोड़ने पर लाचार था।