मोदी सरकार का नया दांव, संसदीय समितियों में होने जा रहा है बड़ा बदलाव; शशि थरूर की होगी चांदी

मोदी सरकार संसद की कार्यप्रणाली में एक महत्वपूर्ण बदलाव करने की तैयारी में है, जिसका असर दूर तक देखने को मिल सकता है। सरकार संसदीय स्थायी समितियों के कार्यकाल को एक साल से बढ़ाकर दो साल करने पर विचार कर रही है। इस कदम का मकसद समितियों के कामकाज में निरंतरता लाना है ताकि वे किसी भी विधेयक या नीतिगत मामले की गहराई से जांच-पड़ताल कर सकें। इस फैसले का एक दिलचस्प राजनीतिक पहलू भी है, जो सीधे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर से जुड़ता है।
संसदीय स्थायी समितियां लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। इन्हें ‘मिनी संसद’ भी कहा जाता है क्योंकि ये तब भी काम करती हैं, जब संसद का सत्र नहीं चल रहा होता। इन समितियों में लोकसभा और राज्यसभा, दोनों सदनों के सांसद शामिल होते हैं। इनका मुख्य काम सरकारी विधेयकों की गहन समीक्षा करना, मंत्रालयों के बजट आवंटन की जांच करना और सरकार की नीतियों का विश्लेषण कर उसे जवाबदेह ठहराना है। ये समितियां सांसदों को किसी भी विषय पर विस्तार से अध्ययन करने का अवसर प्रदान करती हैं।
मौजूदा व्यवस्था के तहत इन महत्वपूर्ण समितियों का पुनर्गठन हर साल किया जाता है। कई सांसदों, जिनमें विपक्ष के सदस्य भी शामिल हैं, का मानना है कि एक साल का कार्यकाल किसी भी गंभीर विषय की तह तक जाने के लिए नाकाफी होता है। हर साल पुनर्गठन होने से काम की निरंतरता टूट जाती है और कई महत्वपूर्ण विधेयकों और रिपोर्टों पर चल रही जांच अधूरी रह जाती है। कार्यकाल को दो साल करने से सदस्यों को विषय को समझने और उस पर गहन अध्ययन करने का पर्याप्त समय मिलेगा, जिससे समितियों के काम की गुणवत्ता में सुधार होगा।
इस प्रस्तावित बदलाव का राजनीतिक महत्व भी कम नहीं है। कांग्रेस के मुखर सांसद शशि थरूर वर्तमान में विदेश मामलों की प्रतिष्ठित स्थायी समिति के अध्यक्ष हैं। मौजूदा समितियों का कार्यकाल 26 सितंबर को समाप्त हो गया है। यदि सरकार कार्यकाल को दो साल करने का निर्णय लेती है, तो शशि थरूर अपने अध्यक्ष पद पर अगले दो साल तक बने रह सकते हैं। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे उन्हें पार्टी के अंदरूनी मतभेदों के बावजूद एक महत्वपूर्ण पद पर बने रहने का अवसर मिलेगा और वे विदेश नीति से जुड़े मामलों में अपनी भूमिका निभाते रहेंगे।